Best Shayari of Rahat Indori | राहत इंदौरी के बेहतरीन शेर
Best Shayari of Rahat Indori
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नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए लेके आये है रहत इन्दोरी शायरी (Best Shayari of Rahat Indori)|
डॉ राहत इन्दोरी जी हिंदी और उर्दू के एक मशहूर शायर थे | राहत इन्दोरी जी का जन्म 1 जनवरी 1950 में इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था । उनकी प्रारंभिक शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर में हुई। उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की मध्य प्रदेश के इंदौर के अरबिंदो अस्पताल में 11 अगस्त 2020 को उनका निधन हो गया
तुफानो से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो !
मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो !!
फूलो की दुकाने खोलो, खुशबु का व्यापर करो !
इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो !!
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहे,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे!!
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम,
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें!!
मौसमो का ख़याल रखा करो
कुछ लहू मैं उबाल रखा करो
लाख सूरज से दोस्ताना हो
चंद जुगनू भी पाल रखा करो
अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं,
पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं||
ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया।
डॉ राहत इंदौरी के बेहतरीन शेर
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो, जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
बुलाती है मगर जाने का नईं
बुलाती है मगर जाने का नईं
ये दुनिया है इधर जाने का नईं,
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुजर जाने का नईं,
सितारें नोच कर ले जाऊँगा
में खाली हाथ घर जाने का नईं,
वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नईं,
वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर जालिम से डर जाने का नईं,
अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है
जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे
जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे
लोग हर मोड़ पे रूक रूक के संभलते क्यूँ है
इतना डरते है तो घर से निकलते क्यूँ है।
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं है हम
आँधी से कोई कह दे के औकात में रहे।
आँखों में पानी रखो होठों पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो।
उस की याद आई है, साँसों ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनो से भी इबादत में ख़लल पड़ता है।
मैं वो दरिया हूँ की हर बूंद भँवर है जिसकी,
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।
अब मेरे साथ रह के तंज़ ना कर, तुझे जाना था जाना चाहिए था
मुझसे पहले वो किसी और की थी, मगर कुछ शायराना चाहिए था
चलो माना ये छोटी बात है, पर तुम्हें सब कुछ बताना चाहिए था